जिंदगी हसीन है Zindagi Haseen Hai

 

                                     हिन्दी कहानी : जिंदगी हसीन है Zindagi Haseen Hai

कहानी का लेखक : अनुलता राज नायर

 

हेलो दोस्तों मैं आपको बताने जा रहा हूं। अनुलता राज नायर की लिखी कहानी “जिंदगी हसीन है” छोटे छोटे नीले बल्ब रोशनी से जगमगाती दीवारें हैं और दरवाजे पर झूलते  ताजे फूलों और आम के पत्तों का बंधनवार। कमरे के एक कोने से बहुत धीमी होती शहनाई की आवाज। बरसों बाद घर में ऐसी रौनक आई थी। बाहर लगी पीतल की नेमप्लेट पर लगे अक्षर भी बल्ब की रोशनी से चमक रहे थे।  “डॉक्टर मीरा कौशिक” शहर के बड़े कॉलेज में केमिस्ट्री की हैड ऑफ द डिपार्टमेंट थी। आज मीरा के बेटे सूरज की शादी की रस्में शुरू हुई थी। सारा इंतजाम सूरज और रागिन के दोस्तों ने संभाल रखा था। रागिनी उनकी होने वाली बहूँ। और सुरेश की सबसे अच्छी दोस्त। और अब होने वाली पत्नी। मीरा लोन के एक तरफ लगे झूले पर बैठी अपनी डायरी में सामान की लिस्ट बना रही थी। कितना सामान लाना था। हलवाई का,  डेकोरेशन, तोफ़े,  राशन और तो और पंडित जी ने हवन में लगने वाले सामान की इतनी लंबी लिस्ट बना दी थी। हल्दी, कुमकुम, अक्षत, चंदन,  घी,  कपूर, अगरबत्ती, आम की लकड़ी और भी न जाने क्या क्या।  सुरेश ने तो पंडित जी के सामने ही टोक दिया था। इतना सामान पंडित जी वह भी हम दोनों की शादी के लिए। पंडित जी हस दिया। बेटा जन्म-जन्मांतर के लिए बंध रहे हैं। तो सारे विधिविधान होने चाहिए कि नहीं। मीरा के भीतर कुछ हल्का सा छन से बिखर गया था। उसकी भी शादी तो ऐसे ही हुई थी। पूरे विधिविधान से। जन्म-जन्मांतर तो क्या! शादी के दो चार साल में ही उसके और विजय के मन कितने दूर हो गए थे। अपने मां-बाप और सुरेश के हर्ट होने का खयाल नहीं होता तो शायद कभ की अलग हो जाती। मन को कठिन फैसले लेने में वक्त लगता है। मन घबराता है कि कहीं कुछ गलत न हो जाए। कि कहीं किसी और को दुख ना पहुंचे। मां कॉफी भेजवाऊ। सुरेश की आवाज आई तो मीरा सर झटक कर फिर लिस्ट फाइनल करने लगी। यस स्ट्रॉंग काफी प्लीज और अपनी भी लेकर आ जा। मीरा ने डायरी बंद करके अपने बेटे को पास बुला लिया। मुझे यकीन नहीं हो रहा की तेरी शादी हो रही है। मीरा ने सुरेश के बाल बिखेर दिए।  सुरेश ने अपना सर मां की गोद में रख दिया। मां बेटे  अपनी गपशप में तल्लीन होते ही कि मीरा का फोन बजा। विजय कॉलिंग स्क्रीन पर नजर पड़ते ही मीरा ने फोन सुरेश को पकड़ा दिया।  फोन उठाते ही उसके चेहरे के भाव बदलने लगे हैं। किसी  चीज की जरूरत नहीं है। माँ ने आपके बिना भी जिंदगी मैंनेज की है ना। अब शादी भी हो जाएगी।  प्लीज पापा उनको अकेला छोड़ दीजिए। मां को किसी के सहारे की जरूरत नहीं है। उन्हें हमारे अलावा अब किसी की जरूरत नहीं पापा। किसी की नहीं। एक फोन कॉल ने हमेशा की तरह मीरा के घर में जरा से धुंध भर दी थी। और यह पहली बार नहीं हुआ था।  उसका घर छोड़ने के बाद बीते सालों में विजय जब जब फोन करता ऐसे ही मीरा का मन खट्टा हो जाता। मीरा को अपने पति विजय से अलग हुए है 15 साल बीत चुके थे। लेकिन अभी वह रिश्ता पूरी तरह से अलग नहीं हो पाया था।  पति पत्नी का रिश्ता तो तलाक नाम का कानून तोड़ देता है लेकिन बाप-बेटे के रिश्ते को वह कैसे तोड़ती। शुरुआती दौर तो बहुत मुश्किल भरा था।   कुछ फैसले ऐसे ही तकलीफ लेकर आते हैं। एक दिन जब विजय  का व्यवहार उसके बर्दाश्त से बाहर हुआ तो मीरा वैसे ही उसके घर से चली आई थी। अपने और सूरज के सर्टिफिकेट्स के अलावा सब कुछ छोड़कर। बिना कोई अधिकार मांगे। तब उसने नहीं पूछा कहां जाओगी।  मेरे बेटे को खिलाओगी क्या। पढ़ाओगी कहां। पालोगी कैसे।  क्योंकि तब उसे लगा कि गुस्से मैं गई है चार दिन दोनों के बाद  लौट आएगी। लेकिन मीरा रा नहीं लौटे थी।

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तब विजय अब बार-बार फोन करने लगा था। सुरेश से हालचाल पूछता और फिर मीरा के खिलाफ अनाप-शनाप अनर्गल बातें कहता। अपने बेटे को लौट आने को कहता। मीरा कसमसा कर रह जाती। उसे कभी-कभी डर लगता था कि कहीं बेटे का कच्चा मन बिखर न जाए। कहीं खटास न आ जाए उसके भीतर। पिता के दिए बड़े लालच कहीं उसको मां से दूर न ले जाएं। मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ। सुरेश समय से पहले समझदार हो गया।  बहुत जल्दी अपनी मां की ढाल बनकर खड़ा होने लगा। माँ ये लो रागिनी का फोन है।  सुरेश ने मीरा को फोन पकड़ाया तब उसे अहसास हुआ कि वह कितनी देर से बीते दिनों की कड़वी यादों में खोई हुई है। हाई मां कैसी हो सब तैयारी आपकी मर्जी से हो रही है ना। रागिनी की खनकती आवाज सुनकर मीरा के उदास पड़ते चेहरे पर ताजगी आ गई। एक दम हमारी मर्जी से। जैसा हम दोनों ने तय बिल्कुल वैसी ही। सुरेश की मर्जी बिल्कुल नहीं चल रही। मीरा हस कर बोली तो रागिनी की हसी फोन के स्पीकर से निकल कर घर के आंगन में फैल गई।  हंसी ऐसी जैसे खुसबुदार लोबान का धुवा हो। मीरा ने मन ही मन उसकी  बलाए ले ली। रागिनी सुरेश की दोस्त और मीरा की पसंद और अब इस घर की होने वाली बहूँ। रागिनी पिछले पाच सालों में अपने दोस्त की महबूबा बनी तो। और उन्ही पाच सालों में मीरा उसकी आंटी से दोस्त बन गई थी। एक साथ में सापिंग। फ़िल्मे। छोटी-मोटी यात्राए।  जो भी हो दोनों एक दूसरे की फेवरेट कंपनी थे। रागिनी अब सुरेश से बात कर रही थी। सुरेश फोन लेकर दूर चला गया लेकिन थोड़ी देर पहले उसके कहे शब्द मीरा के कानों में गूंजने लगे।  प्लीज पापा मां को अकेला छोड़ दीजिए। उन्हें हमारे अलावा किसी की जरूरत नहीं है।  तभी किसी मैसेज के आने से मीरा का मोबाइल वाइब्रेट हुआ। मीरा वह पढ़ने लगी। हाईकिसी चीज की जरूरत हो तो कहना। यह कार्तिक था कॉलेज में उसका कोलीग। इंग्लिश का प्रोफेसर। मीरा के चेहरे पर एक सुकून भरी मुस्कुराहट बिखर गई।  जरूरत हो ना हो। लेकिन किसी अपने का पास होना दुनियां की सबसे बड़ी तसल्ली है। खुशियों वाले दिनों को बीतने की बड़ी जल्दी रहती हैं। लेकिन शुक्र है कि एक खुशी बीतने के बाद फिर किसी और खुशी के चले आने की उम्मीद हमेशा बनी रहती है।

रागिनी अब मीरा के परिवार का हिस्सा बन गई थी। घर में रौनक रहने लगी थी। जैसे किसी ने हवा में अबीर-गुलाल उड़ा दिया हो। ऑफिस से लौटकर  मीरा और रागिनी एक साथ काम निपटाते। और जब रागिनी और सुरेश कहीं बाहर जाते हैं तो मीरा अपनी स्टडी में सुकून से किताब पढ़ती। डायरी लिखती। या मनपसंद गाने सुनती। कभी-कभी एक ही गाना दिन भर लूंप मैं बजता रहता। वह ऐसा ही एक दिन था। जब बच्चे नेशनल पार्क घूमने गए थे। तीन दिन के लिए घर से जैसे आवाज छीन ली गई हो। वीक एण्ड था। मीरा को कॉलेज भी नहीं जाना था। क्या करें कोई फिल्म देख लें। हर फिल्म तो वह सूरज के साथ देखती थी। या रागिनी के साथ। अब अकेले तो जाने से रही। उन्हें लगा 2 4 पेंडिंग कॉल्स ही निपटा लूं। कब से रिश्तेदारों। दोस्तों से बात ही नहीं हुई। उन्होंने फोन उठाया तो कार्तिक का मेसेज था। क्या कर रही हो। बच्चों को मीस करने के अलावा। कार्तिक उन्हें कितनी अच्छी तरह समझता है। उन्होंने जवाब दिया कुछ नहीं कर रही। मीस कर रही हूँ बच्चों को। किताब म्यूजिक किसी काम में मन ही नहीं लग रहा। 30 सेकंड में कार्तिक का जवाब आ गया।  मीरा मेसेज पड़ आप जोर से हंस पडी। कार्तिक के साथ यह कोई नई बात नहीं है। कार्तिक के  साथ  फिर से हंसना सीख गई थी। उस शाम दोनों फिल्म देखने को गए। फिर डिनर फिर डाइट तोड़कर मीठा।  मीरा वापस घर लौटना नहीं चाहती थी। किसी कॉलेज जाने वाली लड़की की तरह बेफिकर महसूस कर रही थी। कार्तिक और वह पिछले दस सालों से दोस्त हैं और दोस्त जिनके सामने जिंदगी पन्ना दर पन्ना खुल गया है।  रात के 10 बज गए थे।  कार्तिक उस को अपने घर पर ड्रॉप करने ही वाला था कि रागिनी का फोन बजा। मीरा ने झट से उठाया लेकिन उनके कुछ कहने के पहले ही रागिनी की आवाज आई। हाई मॉम मिसिंग मी। मीरा का मन भीतर से भीग गया। इस लड़की ने उनकी जिंदगी में बड़े सूबुक  से रंग भर दिए थे। हर खालीपन को आवाज से जिंदा कर दिया था। मीरा हौले से बोली। अच्छा नहीं लग रहा था घर में। कानों को अब आवाज़ों की आदत हो गई है। अभी मूवी देखने आए है मैं और कार्तिक। अरे वाह एंजॉय। रागिनी खुश होकर बोली। उसके बाद सुरेश ने भी बात की लेकिन न जाने क्यों उन्होंने उसके सामने कार्तिक का जिक्र नहीं किया। खुली किताब जैसी जिंदगी बिताने वाली मीरा ने इन दिनों मन के भीतर कुछ पन्नों को सबसे छुपा के सिर्फ अपने लिए रख छोड़ा था।

नर्मदा के किनारे बसे शहरों की एक अलग तासीर होती है। जबलपुर की भी थी। कुछ  सुस्त सी कुछ ताजा सी। जैसे किसी को कहीं भागने की जल्दी नहीं हो। सुबह की सैर से लौटकर गली के मोड़ पर रुककर जलेबियां खाने जैसी बेफिक्री। एक शहर का दिया सबसे अनमोल तोहफा होता है। मीरा ने जलेबियां पैक करवाई और घर पहुंच गई।  सुरेश अभी सोया हुआ था रागिनी चाय पीते हुए उसके इंतजार में थी। चाय पीते-पीते दोनों खामोशी से अखबार पढ़ते हुए कभी इसी खबर पर जरा सी बहस कर लेते थे। मीरा मोबाइल में मैसेज चेक कर रही थी। रात को कार्तिक से हुई चैट डिलीट करने लगी। किसी से छिपाने जैसा कुछ था नहीं। फिर भी रात के डेढ़ बजे का कार्तिक का मैसेज था। “वाचिंग लाइफ इज ब्यूटीफुल” मैसेज पढ़कर मीरा की पीठ पर सिहरन हुई थी। छोटी-छोटी बातें एक-दूसरे से साझा करना। इससे ज्यादा नाजुक एहसास कुछ नहीं होता। क्या कर रही हो। एक छोटा सवाल मन के कितने कपाटों को खोलकर भीतर चला जाता है। क्या वह मॉम कोई प्रॉब्लम। रागिनी ने अखबार किनारे रख दिया। मीरा ने मोबाइल टेबल पर रखा और सोचने लगी कि क्या बताऊं इसे। मन में जो चल रहा है उससे प्रॉब्लम कहूं क्या। और अगर है भी तो रागिनी से अपनी बहूँ  से शेयर कर लूं। रागिनी ने आगे बढ़कर अपना हाथ मीरा की हथेलियों पर रख दिया। मुस्कुराते हुए बोली। आप मुझसे कह सकते हैं माँ वी आर फ्रेंड्स। मीरा हंस दी।  एक हंसी जिसका मकसद  अंदर की उलझोनो पर पर्दा डालना था।  लेकिन कब तक। लेकिन कुछ दिनों पहले जब कार्तिक ने मीरा का हाथ थामकर उसके लिए अपनी पसंद जाहिर की थी। तब से मीरा का मन उलझा हुआ था। इस उम्र में जब उनकी बहूँ घर पर आ गई है। तब उनका किसी की तरफ झुकना कितना अजीब लगेगा। रोकना चाहिए उनको अपने मन को। और न रोक सके तो बताना चाहिए बच्चों को। मना ये उनकी अपनी जिंदगी है लेकिन उनकी जिंदगी पर बच्चों का भी तो हक है। मीरा ने अपनी कलाई पर रखे रागिनी के हाथ को अपनी उंगलियों में भींच लिया और हिचकते हुवे  बोली। मुझे कार्तिक  के लिए इन दिनों कुछ स्पेशल फील होता है। कहकर मीरा चुप हो गई। वह रागिनी की तरफ़ देखती रही। उसके चेहरे के बदलते रंग महसूस करती रही। दोनों में से कोई कुछ कहता इससे पहले सुरेश की आवाज आई। वोट नॉनसेंस। माँ मुझे आपसे यह उम्मीद नहीं थी। सच कहना कितना मुश्किल होता है शायद उतना ही मुश्किल होता है अनचाहे सच को स्वीकार करना।

मीरा की बात से सुरेश बुरी तरह भड़क गया था। मीरा चुपचाप अपने लाड़ले बेटे का चेहरा देखती रह गई थी। बचपन से अब तक उनको बेस्ट मॉम का दर्जा देने वाला उनको आइडलाइज करने वाला उनका बेटा आज। आज उनको जैसे हेकारत की नजर से देख रहा था। एक वक्त था जब इस घर का लोन चुकाने में मीरा की सारी सेलेरी  निकल जाती थी। तब वह कॉलेज के बाद एक कोचिंग इंस्टीट्यूट में पढ़ाने जाने लगी थी। तब सुरेश टेन्थ में था। वह रात को मीरा की गोद में सिर छिपा कर रोया करता था। भगवान से प्रार्थना करता था कि वह जल्दी बड़ा हो जाए ताकि अपनी मां को सारी खुशियां दे सके। आज वह बड़ा हो गया था। लेकिन उसकी और मां की खुशियां आपस में मेल नहीं खा रही थी। उन दिनों जो विजय आधी रात को मीरा को फोन करके धमकियां देता तो। सुरेश उनका का सुरक्षा कवच बनकर अपने पिता से उनको बचा लेता। वह उनको धमका दिया करता था। पापा आपने फोन किया तो मैं पुलिस में कंप्लेंट कर दूंगा। मीरा उसको रोकती रह जाती थी और आज। आज वह कह रहा था माँ अगर आपको कोई कंपनी चाहिए थी तो पापा से सुलाह  कर लेती ना। उन्होंने तो हमेशा को वापस बुलाया था ना। मीरा हैरान थी। पापा से सुलाह। अचानक एक दूसरा पुरुष सामने आया तो उनका बेटा पराया हो गया। भूल गया वह जख्म जो उसके पापा ने दिए थे। मीरा बिना एक शब्द कहे अपने कमरे में चली आई थी। कौन कहता है कि पृथ्वी के घूमने की गति एक समान होती है। अगर होती तो कोई दिन इतना लंबा बाहर जैसा क्यों लगता। उस दिन कॉलेज में मीरा का जरा भी मन नहीं लग रहा था। कार्तिक उनके आस पास आना और मैसेज करना भी अखर रहा था।  वह बार-बार पूछता रहा कि हुआ क्या है। लेकिन मीरा चुप रही। क्या बताती उनका अपना बेटा अचानक दूसरे पाले में आकर खड़ा हो गया था। कि उनकी बहूँ ने खामोशी अख्तियार कर ली थी। क्या बताती उसको कि उनके अपने बच्चे स्वार्थी हो रहे थे।  या कहीं वह खुद ही तो स्वार्थी नहीं हो रही थी,  विजय को छोड़ने के बाद सबने दोबारा शादी करने के लिए कितना समझाया था। कितना मनाया था। लेकिन वह मना करती रही थी। जिंदगी में पुरुष का होना उनके लिए कोई अच्छा अनुभव नहीं था। वह खुद को और सुरेश किसी तीसरे पुरुष के बीच बांटना नहीं चाहती थी।  फिर अपनी नौकरी और उसकी जिम्मेदारी के बाद उनके पास इतना वक्त ही नहीं था।  इतना भी नहीं कि अपनी अधूरी जिंदगी का सोक मनाती। 10 साल अकेले बिताने के बाद कॉलेज में उनकी जिंदगी में कार्तिक आया। अंग्रेजी साहित्य का प्रोफेसर।  कविताएं और  नाटकों की बातें करने वाला। वह मनमौजी मीरा को कब भाने लगा कब उसकी ओर मन  जपने लगा वह  न जान सकी नहीं। मैं जानती हूं तो कभी प्यार करती क्या?  उम्र के साथ समझदारी आती है। सच है,  और हर कदम सोच समझकर फूंक-फूंककर उठाने की आदत भी हो जाती है।  लेकिन मान का किसी से मिल जाना अलग बात है। यह तो जैसे पानी है। ढलान देखा और बह गया। मीरा भी अनचाहे ही कार्तिक से जुड़ गई थी। उसका साथ उन्हें सुकून दे रहा था। लेकिन यह सब बच्चों की कीमत पर। नहीं उनको कबूल नहीं। उन्होंने दूसरे कॉलेज में ट्रांसफर के लिए अप्लाई कर दिया।

घर में सब पहले जैसा हो गया। या शायद सब नहीं। पर  काफी कुछ पहले जैसा हो गया था। सुरेश  कभी-कभार मां की गोद में सर रखकर मालिश करने की जिद करता। वैसे ही ऑफिस आते आते  मीरा को गले लगाता। वैसे ही अपनी पसंद का खाना पकाने की फरमाइश करता। लेकिन रागनी के भीतर कुछ डर गया था। उसका मन उस दिन सूरज ने अचानक आकर फिर मीरा और कार्तिक के रिश्ते पर नाराज हो जाने को लगातार गलत ठहराता रहा। क्या अधिकार था उसको मां को मना करने का। या सलाह देने का। मीरा भले ही पहले की तरह प्यार जताती रही। लेकिन रागिनी महसूस करती रही की  एक खालीपन  है। उसने सुरेश से कहा भी। की मां पहले जैसे लूप में गाने नहीं सुनती। फिल्में देखने की जिद भी नहीं करती है। और और उनकी हंसी में कुछ कमी सी नहीं लगती तुमको। सुरेश चुप रहा फिर कुछ सोचकर बोला। हो सकता है मां कार्तिक अंकल से अटैच हो गई हो। थोड़ा टाइम दो उनको। रागिनी भड़क गई। हो सकता का क्या मतलब। उन्होंने कहा ना कि उनको पसंद करती हैं। और क्यों सुरेश क्यू वक्त दे। और क्यू इंतजार करें उनके भीतर कुछ मर जाने का। हम क्यों उनको इस तरह शर्तो में बांध रहे हैं। मां  ने कितने प्यार से तुमको  मुझे सौंप दिया सोचो उनका इकलौता बेटा पूरे टाइम अपनी बीवी के साथ रहता है।  सुरेश ने बीच में टोका। नहीं ये  दोनों बाते एकदम अलग है। रागिनी बेचैन हो गई। कुछ अलग नहीं है। सिर्फ एक चीज अलग है वह यह कि।  तुम को यह बर्दाश्त नहीं कि मां  किसी से प्यार करें। सुरेश चिड़कर बाहर बालकनी में चला गया। उसका रागिनी  से लड़ने का कोई मूड नहीं था। दिन गुज़रते रहे। मीरा अपने ट्रांसफर के इंतजार में थी। उसने कार्तिक ने दूरी बना ली थी। बस उसका आखिरी मैसेज मीरा ने डिलीट नहीं किया था। तुम्हारे इस फैसले में मैं तुम्हारे साथ नहीं हूं। “लाइफ इज ब्यूटीफुल” मगर तभी जब हम अपनी शर्तों पर जिए। दुख या सुख कुछ भी वक्त को बांध नहीं पाता। उस बात को चार महीने और सुरेश रागिनी की शादी को साल बीत गया। उनकी पहली वेडिंग एनिवर्सरी थी। मीरा ने तोहफे के तौर पर दोनों के लिए खूबसूरत ट्रिप प्लेन की थी। आज दोनों चले गए थे 15 दिन के लिए। मीरा अकेलेपन को खुद पर हावी होने नहीं देना चाहती थी। उन्होंने न जाने कितने दिनों के बाद अपनी पसंद के गाने लगा दिए। किचन में कोफ़ी बनाने लगी कि वहां कॉफी मेकर के पास एक लिफाफा नजर आया।  मीरा ने हैरान होकर खोला तो कि गुलाबी कागज पर एक छोटा सा नोट था। मां थैंक यू फॉर थीस  स्ट्रिप। आपसे सिर्फ लिया ही लिया है। आज हम कुछ देना चाहते हैं।  नोट के  साथ में पिन किया हुआ टिकट था। शाम को हो रहे एक बड़े कंसर्ट का। मीरा मुस्कुरा दीं। उन्होंने थैंक यू टाइप किया और बच्चों को भेज दिया। 2 घंटे बाद वह ऑडिटोरियम में थी।  मन खुश था बच्चों पर  प्यार आ रहा था। तभी बगल वाली सीट पर कोई आकर बैठा और कानों में हल्की सी आवाज आई। डी यू माइंड म्यूजिकल डेट। अंधेरे में नजर नहीं आया पर आवाज! मीरा  ने नजरें गड़ा कर देखा। तो कार्तिक! उनसे एक हल्की सी चीख निकल गई। तुम! तुम यहां कैसे यह कोइंसिडेंस तो नहीं। उन्होंने हैरान होकर कहा। नहीं बिल्कुल नहीं सब प्लेन किया हुवा है। मीरा के कानों में मीठी धुन सुनाई दी।  सामने कंसर्ट शुरू हो गया था। बस इतनी सी थी यह कहानी

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