Best Friend बेस्ट फ्रेंड

                                           कहानी का नाम : Best Friend बेस्ट फ्रेंड

                                            लेखक का नाम : अनिता राज नायर 

हेलो दोस्तों मैं आपको बताने जा रहा हूं; अनिता राज नायर की लिखी कहानी “बेस्ट फ्रेंड” सुबह के ठीक 8:00 थे। मैं अपने फ्लैट में ताला लगा रहा था। अंदर टंकी ग्रैंडफादर्स क्लॉक के पेंडूलम से दाएं बाएं झूलने की आवाज आ रही थी। बार-बार बिगड़ जाने के बाद भी मैं इसको पुराने शहर की तंग गलियों में छिपे बुजुर्ग घड़ी साझों से सुधरवा आता था। पुरानी चीजों को सहेजे रखना शौक है मेरा; पुरानी यादों को भी।  बहुत तंग करती है यह; पुरानी चीजें और यादें भी। लेकिन मन बड़ा जिद्दी है; मानता नहीं। हर रोज घड़ी के पेंडुलम की आवाज के साथ मुझे महिमा याद आ जाती है। बेचैन हो जाता हूं।  पर.. यह बेचैनी मेरी आदत सी बन गई है। मैं ताला लगाकर थोड़ी देर बंद दरवाजे के सामने खड़ा सोचता रहा की; सुबह-सुबह नौकरी पर जाने की हड़बड़ी में महिमा को याद करना ज्यादा जरूरी है या; यह बात पर ध्यान लगाना के प्रेजेंटेशन वाली पेन ड्राइव रखी कि नहीं। पावर बैंक लिया कि नहीं। और नाश्ते के बाद ली जाने वाली दवाई भी। लेकिन जानता हूं आज मेरे सारे जतन बेकार हो जाने है। कल रात से महिमा का अक्स आंखों में; और फोन पर कहीं उसके शब्द कानों में धरना दिए बैठे गए हैं। 5 मिनट बाद मैं सोसाइटी के पार्किंग लॉट से बाहर निकल रहा था।  मैं भोपाल से लगे हुए औद्योगिक क्षेत्र मंडीदीप की एक दवाइयों की फैक्ट्री में काम करता था। सुबह उस ओर जाने वालों की भीड़ रहती थी। इसलिए मैंने समय से थोड़ा पहले निकलने की आदत डाली थी। शहर से निकलकर हाईवे पर आया तो मैंने कार स्टीरियो का वॉल्यूम बढ़ा दिया था कि; 45 मिनट की लंबी ड्राइव में महिमा याद ना आए।  लेकिन पिछले 4 सालों में मेरी हर ऐसी कोशिश नाकामयाब हुई है। वह चली ही आती है मेरे जहन में; महिमा। मेरी कॉलेज के 5 सालों की दोस्त। 3 साल ग्रेजुएशन और फिर दो पोस्टग्रेजुएशन। बात थोडी पुरानी हो चुकी है। तब हम दोनों सागर की हरिशंकर गौर यूनिवर्सिटी में फार्मेसी पढ़ रहे थे। बी फार्मा का कोर्स करते-करते हम एक दूसरे के दर्द की दवा भी बनने लगे थे। नहीं; बस जरा सफर था। महिमा मेरे लिए दवा नहीं दर्द थी। थी क्या; आज भी है। उन पांच सालों के साथ ने मेरे मन में धीरे-धीरे एहसास गहरा निशान बनाया था;  और अब उसका वह फोन कॉल। और सिर्फ कॉल नहीं उसने मुझे बुलाया भी था। नहीं जानता क्यों? कार कब ऑफिस के सामने तक आ गई मुझे पता ही नहीं चला। सिक्योरिटी गार्ड मेरा कार्ड मांग रहा था। स्वाइप करके एंट्री होती है। काश हमारे पास ऐसा ही कार्ड़ या सिस्टम होता; जिससे हम किसी की लाइफ में एंट्री मार सके। किसी की क्यू?  बस काश में महिमा की जिंदगी में इंटर हो पाता। वैसे ठीक कहूं तो मैं महिमा की जिंदगी में शामिल था लेकिन; उस तरह नहीं जिस तरह मैं चाहता था। मैं कॉलेज में उसका बेस्ट फ्रेंड था। याने सबसे अच्छा दोस्त। और जैसे शब्द के साथ हर बात की सीमाएं तय होती हैं। हमारे बीच भी तय थी। लेकिन मेरा मन सीमाओं को लांघने के लिए बेचैन रहने लगा था। मैं उसे प्यार करने लगा था। एक दोस्त से कहीं ज्यादा। यह जानते हुए भी कि वह उनको उस तरह से नहीं चाहती; मैं अपने आप को रोक नहीं सका था। मैं शायद उसके लिए नहीं अपने आपके लिए प्यार कर रहा था।

कॉलेज में महिमा और मैं सबसे गहरे दोस्त थे। क्लास में साथ, फिर लाइब्रेरी, कॉफी शॉप, सब जगह साथ। लोग हमारे बारे में बातें करते थे। हमें रिलेशनशिप में समझते थे। और यह बात सुनकर महिमा मुस्कुरा देती। लापरवाही से अपने कंधे उचका देती। उसे लोगों और उनकी बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता था। उसका दिल जब चाहता वह मेरे गले में अपनी बाहें लपेट के मोबाइल से सेल्फी खींच लेती; और सोशल मीडिया पर अपनी डीपी भी बना लेती।  ऐसे ही किसी लम्हे में एक दिन मैंने अपनी बाहें उसके इर्द गिर्द लपेट दी थी। और वैसे ही शायद पूरी शाम गुजार देना चाहता था।  लेकिन उसने खुद को छुड़ा लिया। शायद उसे वैसा महसूस ही नहीं हुआ जैसा मैं कर रहा था। चल फिर मिलते हैं। कहकर वह चल दी। और अगले ही पल में वहाँ अकेला बैठा; खुद से सवाल कर रहा था कि; यह क्या है। मैं बेस्ट फ्रेंड का किरदार निभाते-निभाते महिमा से प्यार करने लगा था। 21  22 कि उस नाजुक उम्र में भी; मैं उसे दिल की गहराई से एकदम सच्चा वाला प्यार करता था। और महिमा वह बात-बात पर दोस्ती का दम भरती और मैं कुलबुला कर रह जाता। सच कहूं तो मुझे बहुत तकलीफ होती है; उसका दोस्त बने रहने मैं। अपने आप को उसके करीब जाने से रोकने मैं। कॉलेज के बाद हम अलग-अलग रास्ते चल  दिए थे। बिना कोई वादा किए। बिना कोई उम्मीद जगाए। मोबाइल फोन पर बीसियों कम्युनिकेशन के तरीके थे। इसलिए उस हम जुदा होकर भी जुड़े जरूर रहे। मैं भोपाल में था; और वह जबलपुर चली गई; अपने पापा के पास। पहले हम रोज फोन पर बातें करते थे। फिर हम दोनों की नौकरी लग गई।  मैं दवाइयों की इस बड़ी फॉर्म में प्रोडक्शन मैनेजर हो गया। और वह जबलपुर साइंस कॉलेज में लेक्चरर। वक्त कम होता गया तो; संवाद भी घटता गया। लेकिन महिमा मेरे भीतर उतनी की उतनी ही बनी रही। न घटी न बड़ी। कुछ रिश्ते अपनी अपूर्णता में भी एक खास जगह बनाए रखते हैं।  इस बीच तीस -त्योहारों, फ्रेंडशिप डे, जैसे मौकों पर मैसेज आए होंगे। या कभी ऐसा संवाद हुआ होगा; जिसकी मैं कभी न जरूरत समझ पाया। ना वजह जान पाया। हाय, हेलो, कैसे हो। क्या चल रहा है? बस। चल कॉलेज जाने का टाइम हो रहा है बच्चे वेइट कर रहे होंगे। ओके बाई। पर! कल रात महिमा का मैसेज नहीं फोन आया था। और बस एक बात तुम जबलपुर आ जाओ जल्दी। मैं हैरान था। घबरा रहा था। क्या हुआ? तु ठीक है, पापा! उनकी तबीयत कैसी है। हां वो सब ठीक है। बस तुम आ जाओ। और मेरे  कोई गिफ्ट कुछ  फूल वगैरह लेकर आना। ताकि पापा को लगे। उन्हें.. ऐ.. विश्वास हो जाए कि; तुम और मैं.. आई  मीन। यू नौ आई मीन। मैं सन्न..! रह गया। आर यू सीरियस! यस आई एम सीरियस। उसने कहा और फोन रख दिया।

महिमा के फोन कॉल के बाद में पता नहीं कितनी देर तक यही सोचता रहा कि; जो मैंने सुना था वह सच था क्या! आखिर मुझे अपने पापा से क्यों मिलवाना चाहती है। वह भी उस तरह से।  यानि बॉयफ्रेंड की तरह से। यह इशारा तो किया था उसने।  मैं ऑफिस में भी महिमा के हाथों से ही घिरा  रहा। दवाओं की महक की जगह मुझे महिमा के इत्र की महक आती रही। पुराने शहर से खरीद कर इत्र ले जाने का काम मैं ही करता था। उस बड़ा शौक था; तरह-तरह की खुशबूए लगाने का। बस प्यार की खुशबू से वह अनजान क्यों थी; नहीं जानता। कई दफा मैं उससे पूछ भी लेता तो; वह लापरवाही से अपने बाल पीछे झटकती हुई कहती। आई आम ऐ  वेटिंग फॉर ध राइट पर्सन। दिन भर मेरे साथ रहती है। सोशल साइट्स की डीपी में भी; किसी से झगड़ती है तो मेरे कंधे रोती है। खुस होती है तब पार्टी भी मेरे साथ। अपनी मां के देहांत के बाद चार दिन अपना होस्ट छोड़कर मेरे कमरे में आकर रही थी कि; उसको रात में अकेले डर लगता है। कपड़े मेरी पसंद के पहनती है। मैं क्या पहनूंगी यह भी वह तय करती है। तो मैं राइट पर्सन क्यों नहीं। मैं पूछना चाहता था पर कभी पूछ नहीं पाया। मैं मोहब्बत पाने के लालच में एक अच्छी दोस्त नहीं खोना चाहता था। कॉलेज के बाद मैंने उससे दूरी बना ली थी। मुश्किल था ना प्यार होकर प्यार ना होने का दिखावा करना। आज इतने साल बाद वो मुझसे कुछ उम्मीद कर रही थी;और मैं ना चाहते हुए भी रात की ट्रेन भोपाल जबलपुर नर्मदा एक्सप्रेस में सवार हो चुका था। ऑफिस में 10 दिन की छुट्टी की दरखास्त मेल कर दी थी। सुबह जबलपुर स्टेशन पहुंचा तो महिमा मुझे लेने आए थी। यार तू बेस्ट है। कहते हुए वह मेरे गले लग गई; और जब तक मैं उसके स्पर्श को महसूस करता; वह उछलकर  मेरे सामने खड़ी हो गई।  फिर मेरा हाथ थाम के संजीदगी से बोली। चल होटल चल के बात करते हैं। उसने मेरे लिए रुकने का इंतजाम कर रखा था। होटल पहुंचकर कॉपी और सैंडविच के बीच वह मुझे बताती रही; पापा को छ: महीने पहले  हार्ट अटैक आया था। और ICU में वह पाइप्स में, मशीन में, और ऑक्सीजन मास्क में घिरे रहते हुए भी उन्होंने मेरी शादी की रट लगा दी थी। यार पूरे फिल्मी डायलॉग बोलने लगे हैं पापा। कहते हैं जीते जी तेरा घर बसने देखना चाहता हूं। कहते हुए वो ज़रा सा हंस पड़ी। तुझे बस इतना कहना है कि; ऐक्चुली तुझे कुछ कहना ही नहीं है। मैं पापा से कह चुकी हूं कि कॉलेज के जमाने से तुझको चाहती हूं; और शादी भी सिर्फ तुझसे करूंगी। सैंडविच की सूखी ब्रेड मेरे गले में अटक गई। मैंने गरम कॉफी का घुट  भर के निगल लिया। फिर मुस्कुराते उसको छेड़ा; तो कर लेना मुझसे; शादी, सच मुच  मैं। मुझे लगा उसकी आंखों में कोई दबा-छिपा सा अहसास मुझे दिख जाएगा। लेकिन नहीं। उसने अपनी आंखें गोल-गोल बटन की तरह फैलाई और बोली। शादी, नेवर। यार मुझे लगता है मैं नहीं रह सकती है; ये रिस्तों बंधन में। और यह पति वाला रिश्ता तो; कई ओर रिश्ते पैकेज डील  लाता है। मैंरा  तो दम घुट जाएगा यार। और तुझसे तो नहीं। यार तु मेरा सबसे प्यारा दोस्त है। मैंने कॉफी का आखिरी घूंट पिया और उसकी आंखों में देखते हुए बोला; मैं नहीं मिल रहा तेरे पापा से। मुझे नहीं बोलना है झूठ तेरे पापा से। मुझे नाटक भी नहीं करना है तेरे साथ। कह दे अपने पापा से कि तुझे किसी से प्यार नहीं है; और ना कभी हो सकता है। मैं शाम की ट्रेन से वापस लौट रहा हूं।  होटल के कमरे में ऐसी शांति थी जैसे वहां अभी कोई तूफान होकर गुजरा हो। मेरी किसी बात के लिए महिमा को ना कहना किसी तूफान किसी बवंडर के आने जैसा ही तो था।

कॉलेज के दिनों में मुझे नहीं याद पड़ता कि मैंने उसकी किसी बात का विरोध किया हो; अगर कर सकता तो इसके बेस्ट फ्रेंड होने का करता। कहता मुझसे प्यार करो। एक दोस्त से ज्यादा। सच कहूं तो मैं समझ नहीं पाता था कि; वह मुझसे प्यार किए बिना कैसे रह पाती है। वह मुझ पर खुद से ज्यादा यकीन करती थी। अपने सबसे कमजोर पलों में वह हमेशा मेरे पास आई है। और उसके आंसुओं पूरे कॉलेज में सिर्फ मैंने ही देखे होंगे। वरना गले में चटक रंगों का स्कार्फ बांधे कैंपस में फर्राटे से स्कूटर दौड़ती हुई वह लड़की किसी के हाथ कहां आती थी। वह भरी भीड़ में मेरा हाथ पकड़कर खींच लेती। और तमाम लड़के-लड़कियों के शोर के बीच हम अपना एक एकांकी कोना खोज लेते।  मैं उसका वह हाथ पकड़े रहना चाहता था।  उसकी हथेलियां खोलकर अपनी उंगलियों से कुछ लिख डालू। और वह अंदाजा लगाकर बताए  कि; मैंने लिखा क्या है। लेकिन मैं कभी नहीं कह सका। हमारा रिश्ता उसके तय किए गए नियमों की लकीर पर बैलेंस बनाकर चलता रहा। कॉलेज के बाद  सब उसकी मर्जी से ही होता है। हम फोन पर बातें भी तब करते जो वह फ्री होती। मैसेज का जवाब उसका मन होता तो देती। वरना नहीं। मैसेज के दो ब्लू टिक भले मेरा मन कचोट डालते। लेकिन उसे क्या। मुझे उसके साथ रहना है या नहीं। अपने बारे में दोस्तों को कितना बताना है;  कितना नहीं। सब महिमा ने तय किया और मैंने माना। मेरे पास इसकी वजह थी।  उसके लिए मेरा प्यार मुझसे यह सब करवा रहा था। लेकिन आज लगा जैसे मैं थक गया हूं। उक्ता गया हूं दोस्ती के दायरे में बंधा-बंधा। मैंने लैपटॉप खोलकर शाम की टिकट चेक तो;अवेलेबिलिटी नहीं थी। मैंने अगली सुबह 10:00 की बुकिंग कर दी। महिमा बिना कुछ बोले स्क्रीन को ताकती रही। मैंने लैपटॉप बंद किया तो वैसे ही बेफिक्री से बोली। सो अब तुम कल तक हो तो; कहीं घूमने चलें। चलो वह संगमरमर वाली  चट्टानों के बीच बहती मेरी प्रिय नदी नर्मदा दिखा लाती हूँ। मैंने हां में सर हिला दिया। आज के लिए मैं इसका काफी विरोध कर चुका था। थोड़ी देर बाद हम भेड़ाघाट में पहाड़ों के बीच बहती नर्मदा में बोटिंग कर रहे थे। नाव खेने वाला लड़का जो गाइड के रोल में भी था। वह कहानी सुना रहा। कि यहां प्राण जाए;पर वचन न जाए। की शूटिंग हुई थी। महिमा मेरी तरफ देख कर मुस्कुराई तुमने न निभाया वचन। मैंने तुमको  वचन दिया था भी। यह तुमने लिया था। मैं तंग आ गया। उसने मेरी दुखती रग पर हाथ रख दिया था। महिमा हस दी। गाइड मुझसे पूछने लगा। अब आगे भुल- भुलैया है; बताइए नाव कहां मुड़ेगी। दाएं या बाएं। मैं चुप रहा। मुझे तो जिंदगी ही भूल- भुलैया लग रही थी। नर्मदा कहां मुड़ेगी नाव किस ओर जाएगी। यह मैं कहां बताता। गाइड फिर आवारा फिल्म के गाने की शूटिंग बात कर रहा था। वह गुनगुना रहा था। दम. भर जो उधर मुंह फेरे…  ओ चंदा.. आ.. आ .. महिमा बिना पलकें झपकाए मेरी तरफ़ देख रही थी। मैं अपनी नजर उसके चेहरे से हटाना नहीं चाह रहा था। मैंने झुककर नदी के पानी में हाथ डाल दिया। शायद ठंडा पानी मेरे होश वापस ले आए। गाइड गा रहा था। मैं.. तुमसे प्यार कर लूंगा.. बातें हजुर कर लूंगा.. मुझे लगा जैसे कोई जादू हो रहा हो।  मैं फिर धीरे से उसकी तरफ झुक रहा था। धुवादार फॉल से पानी की बूंदें हवा में घूमती हुई मेरे और महिमा के चेहरे तक पहुंच रही थी। महिमा मेरे करीब आकर मुझे बता रही थी। उसकी आवाज रूधी हुई थी। जानते हो पापा ने जब शादी की जिद्द करनी शुरू की तो; उन्होंने शर्त रखी कि मैं ना मानी तो वह दवा लेना बंद कर देंगे। तब इतनी बड़ी दुनिया में बस तुम ही मेरे माइंड में आए। मैंने चौंक कर उसकी तरफ देखा। एक पल को मुझे लगा जैसे यस यही तो वह वक्त है। महिमा मुझे अपने प्यार का इजहार कर रही है। लेकिन वह कहते कहते हैं चुप हो गई। फिर बहुत देर बाद बोली; एक तुम ही तो हो जो हमेशा मेरे साथ खड़े रहे हो। मुझे लगा जैसे वह मुझसे नहीं; उस वक्त अपने आप से बातें कर रही थी। कि मुझे महिमा पर एक बार फिर बहुत प्यार आने लगा था। मुझे लगा कि अपने आपसे बात करता  इंसान दुनिया का सबसे अकेला शख्स होता है। और अकेलापन कभी भी हमारी चॉइस नहीं होता। मैंने जरा सा सरककर अपना बाया हाथ महिमा के कंधे के आस-पास लपेट दिया। मुझे कॉलेज के जमाने की अल्हड़ महिमा याद आने लगी जो; एक सुबह मेरे हॉस्टल रूम का दरवाजा खड़खड़ाती धमक गई थी। उसके हाथ में सागर की खास मिठाई थी। “चिरौंजी की बर्फी” मेरी जुबान पर उस मिठाई के साथ बीते दिनों की मिठास घोलने लगी। वह दिन जब महिमा का हर पागलपन मैं बिना शिकवे-शिकायत झेल जाता था। उसके बनते-बिगड़ते मूड को बर्दाश्त करता रहता था। मुझे कॉलेज कि वह महिमा याद आई जो मुझे एक कौन है मैं खींचते ले जाती।  और अपना पिछली रात का सपना सुनाती। जानते हो मैं कल रात सपने में नटनी थी।  समझते हो नटनी। देखा होगा कभी कस्बों में; अरे! वों जो रस्सी पर बैलेंस करती है। मैं जोर से हंस पड़ा था। उस रोज मुझे लगा था कि;  मैं उस रस्सी को तान के संभाला हुआ आदमी ही तो हूं; की ये नटनी कहीं गिर न जाए। कहीं इसका खेल खराब ना हो जाए। कहीं इसका भरोसा टूट न जाए। चलें महिमा की आवाज से  चौंका! तो; नर्मदा के तेज धुआंधार बहाव की आवाज़ कानों में पड़ने लगी। चलो तुम्हारे घर चलते हैं। फूल और चॉकलेट भी लेकर जाना है। तुम्हारे पापा को लगना चाहिए ना कि; मुझे तुमसे बहुत प्यार हूँ।  मैं बोलता जा रहा था। पता नहीं यह किस चीज का सम्मोहन था। नारंगी होती शाम; बूंदें बिखेरता झरने का पानी। या मेरे करीब खडी यह लड़की। नर्मदा के पानी से थोड़ा भीगे भीगे से मैं और महिमा होटल पहुंचे।

मैंने फिर रेलवे की साइड में लॉगिन किया और अपना रिटर्न टिकट कैंसिल कर दिया। महिमा चुपचाप मेरे पास बैठी स्क्रीन देखती रही। थोड़ी देर बाद में उसके घर उसके पापा के सामने बैठा था। ढलती उम्र और पिछले हार्ट अटैक के निशान उनकी आंखों में पड़ सकता था। धोपनी जैसी चलती सांसे। जैसे बार-बार रुक जाने की धमकी दे रही थी। मैं महिमा के एक बेटी के भीतर का डर महसूस कर रहा था। कैसी चल रही है तुम्हारी जॉब। उसी फार्मा कंपनी में हो। उन्होंने पूछा, जी वही हूँ, शहर मुझे पकड़े हुए है, मेट्रो सिटी के लिए सायद मैं बना नहीं हूं। मैंने हल्का सा मुस्कुरा कर कहा। खुश रहना जरूरी है। तुम खुश रहोगे; तभी तो महिमा को खुश रख पाओगे ना। उन्होंने उम्मीद भरी आवाज से कहा तो; मैं जरा सा काप गया। जैसे झूठ बोलने के बाद; मां के सामने खड़ा बच्चा कापता है। मैंने आगे झुककर उनकी हथेलियों थाम ली। उनकी आंखों का पनीलापन मेरी पलकों में उतर आया। मैंने जेब से रूमाल निकालकर बहाने से आंखे पोछी। हेरान था, याद नहीं पिछली बार कब इस तरह आंखें नम की थी। महिमा पतझड़ में गिरे पत्ते की तरह  चेहरा लिए मुझे और अपने पापा को देखती रही। वह चुप थी। शायद अपने पापा से बोला गया झूठ; उसके गले में भी अटक गया था। थोड़ी देर बाद महिमा के पापा सोने चले गए। वह कॉफी के दो कप लेकर मेरे करीब आकर बैठ गई। पापा कितने खुश है तुमको देख कर। हाँ, मेरा झूठ पकड़ भी नहीं पाए। मैंने हल्का सा तंजिया लहजे में कहा। महिमा नजरे नीची किए कॉफी के कप के ऊपर तैर तय हल्के भूरे झाग में फूंक मारती।  फिर टूटते बुलबुलों को ताकती रहती। मुझे उसकी उतरी शक्ल देख कर अपने कहे का अफसोस हुआ। आई एम सॉरी यार। पता नहीं क्यों तुम्हारे पापा का मेरे लिए जो विश्वास दिखाना मुझे थोड़ा अच्छा नहीं लगा। आई एम फीलिंग गिल्टी। मैं तुम्हें खुश रखने का झूठा वादा किया है;  यह कहते हुए मुझे लगा जैसे; मैं कोई रेस हार गया हूं। और दर्शकों में बैठे मेरे अपने हताश होकर मुझे देख रहे हैं। विश्वास का तोड़ा जाना कितना दुखद है; यह पहले नहीं जानता था मैंने। आने वाले पूरे सप्ताह हमें महिमा के घर आता-जाता रहा। उसके पापा से मिलकर बीते और आने वाले दिनों की बातें करता रहा। तो कब की तारीख तय करें तुम दोनों की शादी की। एक दिन अचानक वह बोले। यह मेरे स्वांग की परीक्षा थी। मैंने उदास होकर कहा; अंकल मेरी बहन का रिश्ता हो जाए बस। अभि एकाद  साल तो नहीं। मैंने अपराधी की तरह गर्दन नीचे कर ली। रात को खाने की टेबल पर महिमा न  तो हमेशा की तरह मुझसे आग्रह कर रही थी। और नहीं खुद  कुछ खा रही थी। रोटी के टुकड़े को देर तक अलर्ट पलटती रही। डिनर के बाद में होटल लौटने लगा तो; महिमा मुझे को छोड़ने बाहर तक आई। गेट पर उसने मेरी कलाई थाम ली। रुक जाओ ना। उसने मनुहार करते हुए कहा। मैं चुप रहा। वह मेरी आंखों में ताकती हुई बोली। समझ नहीं सकी कि बेस्ट फ्रेंड ही तो राइट मैन होता है। मैं चौंका! उसकी हथेलियां मेरी हथेलियों पर कसने लगी। और! और यह स्पर्श मेरे लिए एकदम नया था। उसने अपना सर मेरे कंधे पर टिका लिया। और बोली शायद अब तक मुझे को इसलिए नहीं मिला; क्योंकि कोई तुम जैसा था ही नहीं। मेरे मन के खाखे में तुम पहले से ही थे। और वहाँ किसी और की जगह थी ही नहीं। मैंने झट उसकी बात पर हामी भर दी; और हौले से उसका माथा चूम लिया।  महिमा की बंद आंखों से जरा सा प्यार छलक गया। बस इतनी सी थी यह कहानी।

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